देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, जिन्हें कभी युवा और सख्त प्रशासक की छवि के कारण भाजपा का “फेस ऑफ फ्यूचर” कहा जाता था, आज जनता के भरोसे की बड़ी परीक्षा से गुजर रहे हैं। उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप, बेरोज़गार युवाओं की नाराज़गी, धार्मिक विवादों की आग और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी — सब मिलकर उनकी लोकप्रियता को झटका दे रहे हैं।
भ्रष्टाचार विरोधी दावे, लेकिन सवाल बरकरार
धामी सरकार बार-बार यह दावा करती है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है। खुद मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि तीन साल में 200 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी जेल भेजे गए। हरिद्वार लैंड स्कैम में दो आईएएस अफसर तक सस्पेंड कर दिए गए। यह आँकड़े पहली नज़र में प्रभावशाली लगते हैं। लेकिन जनता पूछ रही है — “क्या ये कदम घोटाले के उजागर होने के बाद उठाए गए, या पहले ही रोकथाम की गई?” जवाबदेही पर यही सवाल उनकी छवि पर भारी पड़ रहा है।
बेरोज़गारी और भर्ती घोटाले: युवाओं का गुस्सा
उत्तराखंड की राजनीति में बेरोज़गार युवाओं की आवाज़ हमेशा निर्णायक रही है। धामी सरकार ने दावा किया कि 25,000 से अधिक नौकरियाँ दी गई हैं, मगर UKSSSC की पेपर लीक और नकल माफिया के किस्सों ने इस भरोसे को चकनाचूर कर दिया। देहरादून से हल्द्वानी तक छात्र सड़क पर उतरे और सीबीआई जांच की माँग उठी। युवाओं का कहना है कि नौकरी पाना मेहनत से ज़्यादा “प्रणाली की खामियों” पर निर्भर हो गया है। यही कारण है कि सरकार के रोज़गार वादों पर लोगों का भरोसा डगमगाने लगा है।
धार्मिक विवाद और ध्रुवीकरण
धामी सरकार का एक और चेहरा है धार्मिक-सामाजिक मुद्दों पर उसका रुख। अवैध मदरसों पर ताले लगाने से लेकर “मज़ारों” और “लैंड जिहाद” जैसे शब्दों तक, सरकार ने कड़ा संदेश देने की कोशिश की है। एक वर्ग इसे साहसिक कदम मान रहा है, जबकि दूसरा इसे सामाजिक सौहार्द को तोड़ने वाला कदम कह रहा है। इसी के साथ समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का फैसला भी लोगों में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ पैदा कर रहा है। कहीं यह “सुधार” माना जा रहा है, तो कहीं “धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला”।
स्थानीय स्तर पर नाराज़गी!
भ्रष्टाचार और धार्मिक राजनीति के बीच सबसे बड़ी समस्या वह है जो आम जनता रोज़ महसूस करती है — स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, टूटी सड़कें, बेरंग गाँव, सरकारी योजनाओं में फर्जीवाड़ा और दफ्तरों में लापरवाही। हाल ही में हल्द्वानी तहसील में कानूनगो का घर से ऑफिस चलाना इसकी ताज़ा मिसाल है। जनता कह रही है — “भ्रष्ट अफसर जेल तो जा रहे हैं, लेकिन आम आदमी को राहत कहाँ मिल रही है?”
विपक्ष का हमला, जनता की बेचैनी!
विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इन मुद्दों को लगातार हवा दे रही है। सोशल मीडिया पर भी धामी सरकार को लेकर तीखी बहस है। परीक्षा घोटाले से लेकर धार्मिक विवादों तक, हर मुद्दा सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। सबसे बड़ा खतरा यह है कि जनता की उम्मीदें बहुत थीं और अब वही उम्मीदें मोहभंग में बदल रही हैं।
जनता का सब्र कितना?
पुष्कर सिंह धामी अभी भी भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व में भरोसेमंद चेहरा माने जाते हैं। लेकिन उत्तराखंड की ज़मीन पर उनकी लोकप्रियता की कसौटी सख्त होती जा रही है। जनता अब केवल घोषणाएँ नहीं, बल्कि ठोस और त्वरित नतीजे चाहती है। यदि भ्रष्टाचार पर नकेल, नौकरियों में पारदर्शिता और स्थानीय समस्याओं का समाधान तुरंत नहीं दिखा, तो अगला चुनाव धामी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।











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