नई दिल्ली।
सनातन धर्म और भारत की प्राचीन मंदिर परंपरा अब केवल आस्था का विषय नहीं रह गई है, बल्कि यह वैश्विक शोध और अकादमिक अध्ययन का केंद्र बनती जा रही है। हाल के वर्षों में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और जर्मनी सहित कई देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में भारतीय मंदिर वास्तुकला, मूर्ति विज्ञान और वैदिक प्रतीकवाद पर विशेष पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि खगोल विज्ञान, गणित, ध्वनि विज्ञान और ऊर्जा संतुलन का अद्भुत उदाहरण हैं। यही कारण है कि विश्वभर के विद्वान अब सनातन मंदिर परंपरा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास कर रहे हैं।
वैदिक वास्तु में छिपा वैज्ञानिक संतुलन
विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय मंदिरों की संरचना इस प्रकार की जाती थी कि वहाँ प्राकृतिक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे। गर्भगृह की स्थिति, शिखर की ऊँचाई, मूर्ति की स्थापना और घंटा-नाद—सबका वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है। विदेशी शोध संस्थानों द्वारा इन विषयों पर गहन अध्ययन किया जा रहा है।
एक अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में उल्लेख किया—
“भारतीय मंदिर केवल धार्मिक संरचनाएँ नहीं हैं, बल्कि यह मानव चेतना और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच संतुलन स्थापित करने की अद्वितीय प्रणाली हैं।”
मूर्ति विज्ञान पर विशेष अध्ययन
विदेशी विश्वविद्यालयों में अब मूर्ति विज्ञान (Iconography) को एक स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। इसमें देव प्रतिमाओं के स्वरूप, मुद्राओं, आयुधों और प्रतीकों के पीछे छिपे गहरे दार्शनिक अर्थों को समझाया जा रहा है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह ज्ञान केवल कला तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मनोविज्ञान और ध्यान विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है।
सनातन ज्ञान की ओर बढ़ती वैश्विक रुचि
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, यह बदलाव इस बात का संकेत है कि विश्व अब भारतीय ज्ञान परंपरा की ओर गंभीरता से आकर्षित हो रहा है। योग, आयुर्वेद और ध्यान के बाद अब मंदिर परंपरा और वैदिक दर्शन भी वैश्विक विमर्श का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
भारत की सांस्कृतिक शक्ति को मिली नई पहचान
विद्वानों का मानना है कि यदि इस ज्ञान का संरक्षण और सही प्रस्तुति की जाए, तो सनातन धर्म आने वाले समय में विश्व को शांति, संतुलन और आध्यात्मिक दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।













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