अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के बीच पिछले कई महीनों से चल रही व्यापारिक बातचीत आखिरकार एक बड़े और ऐतिहासिक समझौते पर पहुँच गई है। दोनों पक्षों ने आयात शुल्क कम करने, कई उत्पादों पर टैक्स में राहत देने और व्यापारिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने पर सहमति जताई है। यह समझौता पिछले कुछ वर्षों से बढ़ते व्यापारिक तनावों के बीच एक सकारात्मक मोड़ की तरह देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह “ट्रेड रीसेट एग्रीमेंट” वैश्विक अर्थव्यवस्था को नई गति दे सकता है, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय संघ दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक ब्लॉक्स में से एक हैं। इनके आपसी संबंध सुधरने से विश्व बाज़ार में स्थिरता आने की उम्मीद है। समझौते में विशेष रूप से स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स, कार निर्माण, फार्मा उत्पाद और कृषि वस्तुओं पर आयात शुल्क चरणबद्ध तरीके से कम करने की बात शामिल है।
इसके अलावा, दोनों पक्षों ने डिजिटल व्यापार और डेटा प्रोटेक्शन से जुड़े कानूनों को भी एक समान करने पर चर्चा की है, जिससे टेक कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने में आसानी होगी। दोनों ब्लॉक्स ने ग्रीन एनर्जी पर सहयोग बढ़ाने के लिए संयुक्त निवेश फंड बनाने की भी घोषणा की है, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन ईंधन और कार्बन-फ्री तकनीकों को बढ़ावा देना है।
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार इस समझौते से भारत और एशियाई देशों को अप्रत्यक्ष रूप से काफी लाभ होगा। चूंकि अमेरिका और EU का ध्यान अब व्यापार युद्ध पर नहीं बल्कि निवेश और विस्तार पर रहेगा, इसलिए एशिया में भी सप्लाई चेन मजबूत हो सकती है। टेक उद्योग, ऑटोमोबाइल उत्पादन और ग्रीन एनर्जी उपकरणों की मांग बढ़ने से भारतीय कंपनियों को निर्यात के नए अवसर मिलेंगे।
यह समझौता उस समय आया है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के खतरे से घिरी हुई है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय शायद आने वाले महीनों में बाज़ार को स्थिरता और निवेशकों को भरोसा प्रदान करेगा। अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ने कहा कि यह साझेदारी आने वाले वर्षों में वैश्विक आर्थिक ढाँचे को नई दिशा देगी।














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