आधुनिक जीवनशैली और डिजिटल युग के प्रभाव के बीच बच्चों को भारतीय संस्कृति, परंपराओं और संस्कारों से जोड़ने के प्रयास देशभर में तेज़ होते जा रहे हैं। धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा विशेष रूप से बच्चों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम, संस्कार शिविर और कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है, जिनका उद्देश्य उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ना है।
इन कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों को रामायण, महाभारत और पुराणों की प्रेरणादायक कथाएँ सुनाई जा रही हैं, साथ ही योग, ध्यान, प्राणायाम, भजन-कीर्तन और संस्कृत श्लोकों का अभ्यास कराया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की गतिविधियाँ बच्चों में अनुशासन, नैतिक मूल्यों और आत्मविश्वास के विकास में सहायक होती हैं।
धार्मिक संगठनों का कहना है कि मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण बच्चे अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में भारतीय परंपराओं से परिचय कराना समय की आवश्यकता बन गया है। कई संस्थाएँ माता-पिता को भी इन कार्यक्रमों से जोड़ रही हैं ताकि घर और समाज दोनों स्तरों पर बच्चों को सही संस्कार मिल सकें।
माता-पिता और शिक्षाविदों का मानना है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम बच्चों को न केवल मानसिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि उन्हें जिम्मेदार और संस्कारवान नागरिक बनने की दिशा में भी मार्गदर्शन देते हैं। इन प्रयासों से आने वाली पीढ़ी में सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकता को मजबूत करने की उम्मीद की जा रही है।













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