मध्य प्रदेश के कई जिलों—छिंदवाड़ा, मंडला, बालाघाट, सिवनी, होशंगाबाद और जबलपुर—में किसानों का गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है। धान की खरीद में हो रही देरी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर समय से भुगतान न मिलने को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। किसानों का आरोप है कि मंडियों में उनकी फसलें हफ्तों से पड़ी हैं, लेकिन खरीद केंद्रों पर प्रक्रिया बेहद धीमी है, जिसके कारण अनाज खराब होने लगा है।
कई किसानों ने बताया कि दिन-रात मेहनत कर उगाई गई फसल खेत से निकासी के बाद मंडी में सड़कों तक बिखरी पड़ी है। कुछ स्थानों पर बारिश के कारण धान की बोरी में नमी बढ़ गई, जिससे फसल की गुणवत्ता गिरने और किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होने की आशंका है। मंडियों की व्यवस्थाओं पर नाराज किसानों ने धरना दिया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी भी की।
स्थिति गंभीर होते देख राज्य सरकार हरकत में आ गई है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने कृषि विभाग और खाद्य आपूर्ति विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ आपात समीक्षा बैठक की। सरकार ने मंडी सचिवों और खरीद केंद्र प्रभारी अधिकारियों से 24 घंटे के भीतर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही अगले 72 घंटों में खरीद की गति बढ़ाने और अतिरिक्त वजन मापक मशीनें लगाने की घोषणा की गई है ताकि लंबी लाइनों को कम किया जा सके।
सरकारी अधिकारियों ने दावा किया है कि खरीद व्यवस्था में सुधार लाने के लिए अतिरिक्त ट्रक, मजदूर और स्टाफ की तैनाती की जा रही है। वहीं ऑनलाइन पोर्टल की तकनीकी समस्याओं को भी जल्द ही हल करने का आश्वासन दिया गया है, क्योंकि कई किसान अपनी पंजीकरण स्थिति न दिखने से परेशान थे।
दूसरी ओर, किसानों ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें जल्द नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को जिला मुख्यालयों और राजधानी भोपाल तक बढ़ाया जाएगा। किसान संघों ने कहा है कि MSP की गारंटी, समय पर भुगतान, और मंडियों में उचित व्यवस्था उनकी प्राथमिक मांगें हैं, जिन पर बिना विलंब गौर किया जाना चाहिए।
किसानों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गए हैं। विपक्ष ने सरकार पर किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए पूरे मामले की हाई-लेवल जांच की मांग की है। उधर, प्रशासन का कहना है कि स्थिति नियंत्रण में है और जल्द ही किसानों को राहत मिलेगी।
मध्य प्रदेश कृषि प्रधान राज्य होने के कारण धान की खरीद में देरी न केवल किसानों पर बल्कि पूरे खाद्य आपूर्ति तंत्र पर असर डाल सकती है। इसलिए, विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का हल जल्द निकलना बेहद जरूरी है।













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